बाहरी दिल्ली के मेट्रो विहार के मज़दूरों के बीच पहुंचा मज़दूर मांगपत्रक आन्दोलन
दिल्ली, 23 जनवरी। आज केन्द्रीय दिल्ली से लगभग 30 किलोमीटर दूर उत्तर पश्चिमी दिल्ली के होलम्बी कलां गांव और बवाना औद्योगिक क्षेत्र के बीच बसायी गयी इस मज़दूर बस्ती के बारे में आम लोगों को शायद ही पता हो। सुबह दिल्ली के मज़दूर मांगपत्रक आन्दोलन के तहत उत्तर-पश्चिमी दिल्ली मज़दूर यूनियन और स्त्री मज़दूर संगठन के कार्यकर्ता लगभग एक लाख की मज़दूर आबादी में पहुंचे और सुबह-सुबह काम पर निकल रहे मजदूरों के बीच जनसभा की व पर्चा वितरण व नाम-पता नोट करके 6 फरवरी को दिल्ली सचिवालय चलने का आह्वान किया।
कार्यकर्ता जब वहां पहुंचे तब मजदूरों ने काम पर निकलना ही शुरू किया था और वे बेहद कम संख्या में नजर आ रहे थे, लेकिन देखते ही देखते वहां मज़दूरों का कारवां गुजरने लगा। साथियों ने पहले ताली बजाकर मज़दूरों को इकट्ठा किया, उसके बाद सभा में भाषण देकर मजदूरों के अधिकार, मज़दूर मांगपत्रक आन्दोलन, 6 फरवरी को मुख्यमंत्री केजरीवाल के दफ्तर पर दस्तक के अभियान के बारे में बताया। इस बीच पर्चे बांटने और 6 फरवरी को दिल्ली सचिवालय चलने के लिए लोगों के नाम पते नोट करने का काम जारी रहा। अनेक स्त्री मज़दूरों ने भी स्त्री मज़दूर संगठन की कार्यकर्ता को घर-कारखाने-बस्ती की अपनी समस्याएं बताते हुए अपने नाम-पते दर्ज करवाए और इस अभियान के प्रति जुझारू एकजुटता प्रकट की। साथियों ने मज़दूरों को चुनाव पूर्व अरविंद केजरीवाल द्वारा गरीबों-मजदूरों के लिए किए गए वायदों के बारे में बताया, जिनके बारे में उन्होंने चुनाव जीतने के बाद चुप्पी साध ली है। यूनियन के साथियों ने इन वायदों की याददिहानी के लिए और उन्हें पूरा करने का दबाव बनाने के लिए 6 फरवरी को लाखों की तादाद में दिल्ली सचिवालय को घेरने का आह्वान किया।
लगभग एक लाख की मज़दूर आबादी वाली मेट्रो विहार की बस्ती में अन्य सभी गरीब बस्तियों की तरह शिक्षा का निचला स्तर, पीने के साफ पानी की कमी, सार्वजनिक शौचालयों की बदतर स्थिति, पन्नियों के दलदल से भरी हुई बजबजाती नालियां, बदबू मारते यहां-वहां पड़े हएु कूड़े के ढेर का साम्राज्य कायम है। ऊपर से मकान-मालिकों और दलालों-ठेकेदारों की गुण्डागर्दी अलग। यहां रहने वाले लोग लगभग 10 साल पहले दिल्ली के विभिन्न इलाकों लक्ष्मीनगर, शकरपुर, आईटीओ, बापूधाम, बड़ा बाग, पश्चिम विहार, कैम्प आदि से उजड़कर आये हुए परिवार हैं, जो पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश आदि जगहों से विस्थापित हुए थे या यूं कहें कि पूंजी की मार से अपने जगह-जमीन से उजड़कर शहर में आकर व्यापक मेहनतकश आबादी का हिस्सा बन गये।