माँगपत्रक शिक्षणमाला – 10 ग़ुलामों की तरह खटने वाले घरेलू मज़दूरों को उनकी माँगों पर संगठित करना होगा

देश में इस समय 10 करोड़ लोग घरेलू मज़दूर के तौर पर काम कर रहे हैं। लेकिन यह सिर्फ़ एक अनुमान है क्योंकि इसके बारे में कोई भी ठोस आँकड़े उपलब्ध नहीं हैं। वास्तविक संख्या इससे कहीं ज्यादा हो सकती है। इनमें सबसे अधिक संख्या औरतों और बच्चों की है। अन्तरराष्ट्रीय श्रम सम्मेलन के अनुसार घरेलू मज़दूर वह है जो मज़दूरी के बदले किसी निजी घर में घरेलू काम करता है। लेकिन भारत में इस विशाल आबादी को मज़दूर माना ही नहीं जाता है। ये किसी श्रम क़ानून के दायरे में नहीं आते और बहुत कम मज़दूरी पर सुबह से रात तक, बिना किसी छुट्टी के कमरतोड़ काम में लगे रहते हैं। ऊपर से इन्हें तमाम तरह का उत्पीड़न का भी सामना करना पड़ता है। मारपीट, यातना, यौन उत्पीड़न, खाना न देना, कमरे में बन्द कर देना जैसी घटनायें तो अक्सर सामने आती रहती हैं, लेकिन रोज़-ब-रोज़ इन्हें जो अपमान सहना पड़ता है वह इनके काम का हिस्सा मान लिया गया है। इन्हें कभी भी काम से निकाला जा सकता है और ये अपनी शिकायत कहीं नहीं कर सकते।