एक तरफ़ मज़दूर कोरोना संक्रमण और मौत के जोखिम को झेल रहे हैं। दूसरी तरफ़ घोर मज़दूर-विरोधी मोदी सरकार ने इस संकट में बिना किसी तैयारी और योजना के जो लॉकडाउन थोपा उसमें भी सैकड़ों जानें चली गयीं। जो प्रवासी मज़दूर अपने घरों को लौटना चाहते थे, उनके लिए कोई व्यवस्था नहीं की गयी। नतीजतन, श्रमिक ट्रेनों में कम से कम 80 मज़दूरों और उनके बच्चों की मौत हुई। अब फिर बिना किसी योजना के लॉकडाउन को खोलने के नाम पर हमें कारख़ानों में काम के लिए धकेला जा रहा है, ताकि पूँजीपतियों की मुनाफे़ की महीनों से ठप्प पड़ी मशीनरी चालू हो सके। नतीजतन, देश के दर्जनों कारख़ानों और दफ़्तरों में मज़दूर साथियों को कोरोना संक्रमण हो रहा है, मज़दूर बस्तियों में कोरोना संक्रमण तेज़ी से फैल रहा है और उनकी मौतें हो रही हैं और इनके आँकड़ों को बड़े पैमाने पर छिपाया जा रहा है।