उद्योगीकरण के अलग-अलग दौरों और पूँजी-संचय की प्रक्रिया के अलग-अलग चरणों में विभिन्न तरीक़ों से स्त्रियों को उन निकृष्टतम कोटि की उजरती मज़दूरों की कतारों में शामिल किया गया जो सबसे सस्ती दरों और सबसे आसान शर्तों पर अपनी श्रम शक्ति बेच सकती हों, सबसे कठिन हालात में काम कर सकती हों और घरेलू श्रम की ज़िम्मेदारियों के चलते संगठित होकर पूँजीपतियों पर सामूहिक सौदेबाज़ी का दबाव बना पाने की क्षमता जिनमें कम हो।